Home > Principal’s Message

प्रधानाचार्य के अन्तर्मन से

आत्मीय अभिभावक बब्धु,

महान विचारक पं० दीनदयाल उपाध्याय ने कहा है कि संस्कृति, ज्ञान, चरित्र के संगम से शिक्षा तीर्थराज प्रयाग बन जाती है| वास्तव में सरस्वती विद्या मन्दिर तीर्थराज प्रयाग के समान – सा पवित्रय लिए सर्वागीण बाल विकास के लिए प्रतिबद्ध है । शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित युवा राष्ट्ररजीवन के संरक्षण और सम्वर्धन की गारण्टी है। हमारा शुद्ध और सात्विक प्रयास है कि विद्या भारती के लक्ष्य के अनुरूप छात्रों का सर्वागीण विकास हो, परन्तु व्यक्ति निर्माण की अतीव कष्ट साध्य साधना में अभिभावकों के सहयोग की परम आवश्यकता है।

 

भारतीय षड्‌ दर्शनों में आदर्श शिष्य (छात्र) को शिक्षा की प्रमुख शर्त माना गया है | यदि छात्र आदर्श नहीं होगा तो लक्ष्य के अनुरूप विकास असम्भव होगा| यह स्मरणीय है कि विद्या विनय देती है परन्तु विनय से पात्रता प्राप्त होती है | विद्यार्थी के पन्‍च लक्षण सभी के ध्यान में हैं-

काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च। स्वल्पाहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम्‌ |।

ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यार्थी में कौवे जैसी चतुराई, बगुले जैसा ध्यान, कुत्ते जैसी नींद, अल्पाहारी और गृहत्यागी मनोवृत्ति का होना आवश्यक है।

अतः अभिभावक का दायित्व है कि वह अपने पाल्य को विद्याध्ययन के कालखण्ड में उक्त का सतत्‌ स्मरण कराते रहें और स्वयं भी इसका ध्यान रखें उपभोक्‍तावादी दृष्टिकोण से बचें । आज के संक्रमित वातावरण से स्वयं को तथा अपने परिवार को बचाकर रखें | विद्यालय को अपना सम्पूर्ण सहयोग, स्नेह प्रदान करें। मुझे विश्वास है कि आपका पाल्य एक योग्य सुसंस्कृत, राष्ट्रभक्त, मानवीय मूल्यों से अलंकृत भारत माता का सपूत बनकर यहाँ से सेवार्थ प्रस्थान करेगा ।

शुभकामनाओं सहित धन्यवाद!

आपका स्नेहाकांक्षी
भूपेन्द्र कुमार सिंह